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भजन क्या है?

भजन के इस संसार में दो शाब्दिक अर्थ प्रचलित है- प्रथम वह, जो आपको परमात्मा से प्रीत कराता है तथा दूसरा वह, जो आपको परमात्मा से मिलाता हैं। इस विश्व में अधिकतर व्यक्ति प्रथम अर्थ को ही यथार्थ मानकर जीवन यापन करते हैं या कहा जाए तो भक्ति करते हैं, किंतु जो व्यक्ति वास्तव में दुर्लभ मनुष्य जीवन के प्रयोजन को आत्मसात करते हैं, अर्थात यह भाव हो जाता है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल आत्मा का परमात्मा से मिलन है। वह भजन के दूजे अर्थ को यथार्थ मानकर मनुष्य जीवन का पूर्ण उपयोग करते हैं, क्योंकि संसार में केवल भारत भूमि ही ऐसी भूमि है जिसको धर्म शास्त्रों में कर्मभूमि के नाम से जाना जाता है।

अर्थात् जहां आप नवक करके विकर्मी हो सकते हैं वरन अन्य भूमियों को भोग भूमि की उपमा दी गई है, क्योंकि वहां केवल आप अपने कर्मों का फल भोग सकते हैं. यही कारण रहा कि विदेशी दार्शनिकों ने अपने जीवन के एक बार तो भारत भ्रमण का विचार बनाया ही तथा उन्हीं से प्रेरित होकर भारत भूमि पर एकाधिकार करने हेतु विदेशी आक्रांता समय-समय पर आते रहे।

तो चलिए मुख्य विषय की ओर चलते हैं- प्रथम अर्थ भजन का है. भजना अर्थात प्रेम से परमात्मा में अपने ईष्ट का गुणगान करना, नृत्य करना, गीत गाना, माला फेरना इत्यादि। किंतु आश्चर्य का विषय है कि इन सब का कार्यों से परमात्मा नहीं मिलता । द्वितीय अर्थ भजन का है, जो कि परम सत्य है- में भंजन करना अर्थात् तोड़ना। तो क्या तोड़ना है ? हमें तोड़नी है वह परत जो हमारी आत्मा व परमात्मा के बीच हमारे कर्मों द्वारा बनी है। हमें तोड़ना है मद – माया मोह काम क्रोध लोभ की वह दीवारें जो परमात्मा का दर्शन करने से हमें वंचित करती है।
तो फिर तोड़ा कैसे जाये? यहां तो कोई हथोड़ा भी नहीं है। क्या विधि है? क्या प्रक्रिया है? वह है- नाम को जपना मुख व ज्विहा से उस परमात्मा के नाम को जपना, जिसके द्वारा जीवात्मा अंतविज्ञान के उस पथ पर अग्रसर हो जाती है। जिसके लिए भगवान श्री कृष्ण द्वारा कहा गया है कि कर्म करते हुए भी जो विकर्मी हो जाए, वही ज्ञानी है। वही सच्चा भक्त है। क्योंकि गीता मैं भगवान श्री कृष्ण ने तथा रामचरितमानस में संत तुलसीदास ने चार श्रेणी के भक्त बताएं- 1. ज्ञानी, 2. आर्त 3. जिज्ञासु, 4. अर्थार्थी

आश्चर्य का विषय यह है कि केवल जानी जन ही इस संसार में भजन करते हैं तथा अन्य तीन तो परमात्मा को अपनी कार्य सिद्धि हेतु भजते हैं। थोड़ा और विस्तार से समझें तो ज्ञानी- ईश्वर को जान कर भजने वाले जैसे प्रहलाद, नारद, ध्रुव आदि। जिज्ञासु-ईश्वर को जानने की इच्छा रखने वाले जैसे दत्तात्रेय, शबरी, शंकराचार्य इत्यादि ।

अर्थार्थी कार्य सिद्धि हेतु ईश्वर का स्मरण करने वाले, जैसे सम्रीवादी आर्त-दुःख में पड़कर ईश्वर को याद करने वाले जैसे- गजेन्द्र द्रोपदी 4 इत्यादि भगवद् गीता में भी भगवान ने अर्जुन से कहा-

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी व भरतर्षम ।।

इस प्रकार भारतवर्ष में सभी की पुण्यात्मा परमात्मा को अलग-२ प्रकार व से भिन्न 2 निमित्त से भजती है। इसी सन्दर्भ में संतो ने कहा है-

जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिन तैसी ॥
हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहुविधि सब संता ॥

डॉ० नीलेश रस्तोगी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, राम जी राम निका धारा)

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