सोरठी महला ३ ॥ भगति खजाना भगतन कउ
दिआ नाउ हरी धनु सचु सोइ ॥ अखुटु नाम धनु
कड़े निखुटे नहि किने न कीमति होइ नाम धनि
मुख उजले होए हरि पाइआ सचु सोइ ॥ 1 ॥ bमन
मेरे गुर सबदी हरि पाइआ जाई ॥ बिनु सबदै जगु
भुलदा फिरदा दरगाह मिले सजाइ ॥ रहाउ ॥ इसु
देही अंदरि पंच चोर वसहि काम क्रोध लोभ मोह
अहंकारा॥ अमृतु लुटहि मनमुख नहि बूझहि
कोई न सुणे पूकारा ॥ अँधा जगतु अंधु वरतारा
बाझ गुरु गुब्बारा ॥ 2 ॥