हर-हर राम ।। घर-घर राम जागरण अभियान

राम नाम है जीवन धारा,

गूंजे इससे ब्रह्मांड सारा।

राम व्याप्त है कण-कण में,

करो अनुभव क्षण-क्षण में ।।

चौ. रणवीरसिंह (राष्ट्रीय कवि)

समाज के उत्थान हेतु तीन स्तर है :

  • भौगोलिक संरचना
  • शिक्षा एवं स्वास्थ्य
  • एवं आध्यात्म

जैसा कि चिरकाल में हमारे भारतवर्ष के संत देश को विश्व के पटल पर एक | आध्यात्मिक विश्वगुरु के रूप में देखने के लिये अथक प्रसास करते आ रहे है। उसी श्रृंखला में हम राम जी राम नीकापंथ सद्गुरु नारायण जी महाराज के सानिध्य में भारत की सनातन संस्कृति के उत्थान हेतु एक अभियान का शुभारम्भ करने जा रहे है जिसका उद्देश्य है –

।। हर जन के हृदय में ‘राम’ नाम की अलख जगाना ।। क्योंकि सनातन संस्कृति से समाज को जोड़ने वाला एक मात्र नाम है- “राम”

पूर्व समय में भी अनेक संतो ने इस प्रकार की यात्राएं कर जन मानस को आध्यात्म का संदेश दिया है। लगभग 1000 वर्ष पूर्व श्री रामानुजाचार्य जी ने सुदूर दक्षिण से उड़ीसा तक अपने 60,000 शिष्यों के साथ पैदल यात्रा कर राम नाम की महिमा को फैलाया। उसी क्रम में यह ‘राम नाम दक्षिण से उत्तर भारत में आया तथा रामानन्दजी महाराज ने काशी में गृहण किया।

अनन्त श्री रामानन्दजी ने अपने अभूतपूर्व 12 शिष्यों के द्वारा राम नाम की अलख को सम्पूर्ण उत्तर भारत में हर जाति सम्प्रदाय के जनों तक पहुचाया। उन्होने ‘राम नाम को प्रत्येक जन के हृदय में प्रविष्ट कराया तथा भक्ति को सर्वसुलभ बनाया। उसी क्रम में अनुमानित 600 वर्ष पूर्व सद्गुरु नानक देव जी महाराज ने भी चार उदासी यात्राएँ कर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ‘राम नाम से प्रकाशित किया और लगभग 250 वर्ष पूर्व राम जी राम निर्गुण धारा के अभूतपूर्व केवली संत सद्गुरु सुखराम जी महाराज ने भी ‘राम’ नाम के प्रचार प्रसार हेतु राजस्थान से चलकर मध्य प्रदेश होते हुए बास बरेली तक की रथ यात्रा की।

वर्तमान में परमात्मा के इस अनुपम नाम के प्रचार की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए राम जी राम निर्गुण धारा के 16वें प्रवर्तक सद्गुरु नारायण जी महाराज इस अद्भुत यात्रा का शुभारंभ करने जा रहे हैं क्योकि एक मात्र राम नाम ही इस कलिकाल में जीवों को भावसागर से पार लगाने हेतु जहाज का कार्य कर रहा है।

मानव जीवन का परम लक्ष्य

मानव जीवन अनमोल है। यह एक सुअवसर है। इसमें अलौकिक क्षमताएं है। आत्मा तत्व को प्रदीप्त करते हुए परमात्मा तत्व को जानने व समझने की क्षमता मात्र इसी में है और किसी जीवधारी में नहीं। यथा-

बड़े भाग मानुष तन पावा सुर दुर्लभ सदग्रंथन गावा।। (रामचरितमानस)

हमारे धर्मशास्त्रों ने मानव जीवन के चार उद्देश्य बताए है- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष प्रथम तीन की प्रतिपूर्ति करते हुए जीवन के परम लक्ष्म (मोक्ष) की ओर बढ़ते जाना ही हमारा (जीवात्मा का) महानतम् कर्तव्य है, और यह कार्य केवल और केवल मुनष्य जीवन में सम्भव है।

भारत के महान वैज्ञानिक संतो ने सर्वजन कल्याणर्थ यही प्रतिपादित किया है कि कलयुग में परम लक्ष्य (मोक्ष) की प्राप्ति मात्र नाम स्मरण (नाम जप योग) की प्रविधि से ही सम्भव हो सकती है। यथा-

कलयुग केवल नाम अधारा। सुमिरि सुमिर नर उतरहि पारा।। (रामचरितमानस)

देवताओं एवं महापुरुषों ने यह भी स्पष्ट किया है कि तारम मन्त्र केवल राम नाम ही है। यह महामन्त्र है। भगवान शिव भी इस मन्त्र का अहर्निश जाप करते है। वाल्मीकि रामायण में इस रहस्य का स्पष्ट उल्लेख किया गया है-

सप्त कोट्यों महामन्त्राश्चित्तविभ्रमकारकाः । एक एव परो मन्त्रो ‘राम’ इत्यवरद्वयम् ।।

सात करोड़ मन्त्र है। ये चित्त को भ्रमित करने वाले है।

यह दो अक्षरों वाला ‘राम नाम महामन्त्र है। सारे मन्त्र इसमें ही समाहित है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने मानस में ‘राम’ नाम के प्रताप का वृहद विवेचन किया है। महिमा इतनी अपार है कि उसका वर्णन करने में उन्होंने स्वयं का अक्षम पाया और अंतत यही कहकर विराम लगा दिया-

कहों कहाँ लगि नाम बड़ाई, राम न सकहि ‘नाम’ गुण गाई (रामचरितमानस)

रामजी राम नीका धारा का दृष्टिकोण एवं उद्देश्य

भारत को पुनः आध्यात्मिक विश्व गुरू बनाने की हो रही तैयारी

यदि आधुनिक कलयुग में मनुष्य को स्वस्थ्य एवं शान्तिपूर्ण जीवन जीने की कला सीखनी है तो निम्न बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित कर आन्तरिक विश्लेषण करना होगा :-

  1. जीवन्त करनी होगी पुरातन संस्कृति (नैतिक ज्ञान)
  2. आध्यामित्क धरोहर को बनाना होगा जीवन का अभिन्न अंग (आध्यात्मिक ज्ञान)
  3. भारतीय संस्कृति के मौलिक तत्वों को भावी पीढ़ी में समावेशित करना (सामाजिक ज्ञान)
  4. मस्तिष्क के उच्चतम् स्तर को प्राप्त करने हेतु प्रयास (शारीरिक ज्ञान)
  5. नारी सशक्तिकरण हेतु समझने होंगे पहलू (मानसिक ज्ञान)

देश का युवा वर्ग सम्पूर्ण धरा को बनायेगा स्वर्ग