कहा जाता है कि इस संसार में जीव खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है किंतु यह अधूरा सत्य है। जीव सांसारिक कोई भी वस्तु साथ ला नहीं सकता और नहीं ले जा सकता है किन्तु चार सूक्ष्म वस्तु ऐसी है जो कि जन्म जन्मांतर तक जीव के साथ चलती है और वास्तव में यहीं चार सूक्ष्म वस्तु है जो जीव को जीवन-मृत्यू से बांधे रहती है उसे बार बार जन्म मरण के जाल में फसाये रखती है और वह चार वस्तु है मन, बुद्धि, कर्म, भक्ति ।

आइये, यहाँ चर्चा है कर्मों की सर्व विदित है की कर्म क्या है? अच्छे कर्म एवं बुरे कर्म ॥ अच्छे कर्म करने से आप पुण्यात्मा कहलाते है. स्वर्ग के अधिकारी बनते हैं और बुरे कर्म करने से पापात्मा कहलाकर नरक की खानों में दुःख भोगते हैं। अर्थात कर्म तो करने ही पड़ेंगे। भगवत गीता में भगवान कृष्णा भी कहते है हे पार्थ तुम धर्म की रक्षा हेतु कर्म करो, फल- की चिंता मत करो। उसका निर्णय तो प्रकृति स्वयं करेगी। धर्म की रक्षा करने के लिए अर्जुन को स्वर्ग मिला तथा अधर्म का साथ देने के कारण करण को नरक की यात्रा करनी पड़ी। कहने का तात्पर्य इतना ही है कि अगर आप कर्मों से बंधे हुए हैं तो आपको जन्म-मरण स्वर्ग-नरक चौरासी के फेर में घूमना ही पड़ेगा।

और अगर आप मोक्ष की इच्छा रखते हैं तो आपको ऐसा कर्म करना पड़ेगा जो कि आपके तीनों प्रकार के कर्मों का नाश कर दे तथा स्वयं भी होते हुए आपको कर्म में लिप्त न रखे। क्योंकि अगर कर्म नहीं होंगे तो आपको भुगतने या भोगने के लिए इस धरा पर नहीं आना पड़ेगा।

इसलिए अंतर्विज्ञान यात्रा उस कर्म को करने कि वह  शुरुआत है जो आपको मोक्ष द्वार तक पहुँचाती है।