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धर्म ग्रंथों/ वेदों में गौ की महिमा

धेनु सदानाम रर्वनाम – अर्थवेद

गाय समृद्धि व प्रचुरता की द्योतक है।

गौ दिज धेनु देव हितकारी। कृपा सिंधु मानुष तन धारी ॥.. रामचरितमानस 

रामचंद्र जी ने गो ब्राह्मण देवता तथा गौवंश की समृद्धि एवं संरक्षण के लिए जन्म लिया था। 

अवश्यं यतचितरमुषित्वापि विषया, वियोगी को भी दस्त्यजति न जनो पत्स्वय ममून। व्रजन्तः स्वतंत्रयादतुलपरितापाय मनसः स्वयं त्यक्ता हो शमसुखमनन्तं विद्धाति ॥

सांसारिक विषय एक दिन हमारा साथ छोड़ देंगे, यह एकदम सत्य है। उन्होंने हमको छोड़ा पा हमने उनको छोड़ा, इसमें क्या भेद? दोनों एक बराबर है। अतएव सज्जन पुरुष स्वयं उनको त्याग देते हैं। स्वयं छोड़ने में ही सच्चा सुख है, बड़ी शांति प्राप्त होती है।

जिमि सरिता सागर महँ जाहि ताहि कामना नाहि ॥ तिमि सुख सम्पति बुलाये। धर्मशील पहँ जाई सुहाये ॥

जैसे सरिता (नदी) उबड़-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती है। उसी प्रकार धर्म रथ पर आमीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए समस्त सुख-सम्पति, रिद्धि सिद्धियाँ स्वतः आ जाती है, सत्य तो यह है कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती है।

धर्माचरण कि महत्ता-

जिस प्रकार मैले दर्पण में सूर्यदेव का प्रकाश पड़कर भी भाषता नहीं है, उसी प्रकार मतिन अंतःकरण में ईश्वर का प्रकाश का प्रतिविम्व नहीं पड़ता है। अतः आसुरी प्रवृत्ति वाला मनुष्य ईश्वर द्वारा प्रदत दिव्या दृष्टि या दूर दृष्टि का अधिकारी नहीं बन सकता। अगर सद्गुरु कृपा द्वारा प्राप्त हो भी जाये तो वह उन्हें खो देता है।

युपं गावो भेद कृशं चीदक्षीर चि कृणुथ सुप्रतिकमं ॥ भद्र गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहदो वय उच्यते सुभासु ॥ अर्थविद

निर्वत मनुष्य गौओं के दूध से बलवान व हष्ट-पुष्ट बनता है तथा फीका और निस्तेज मनुष्य तेजस्वी बनता है। गौओं से घर कि शोभा बढ़ती है। गोओं का शब्द बहुत प्यारा लगता है।

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