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गौ सूक्त

१. माता रुद्रानं दुहिता वसूनां स्वसादित्यनाममृतस्य नाभि

प्र न वो चिकितुषे जनाय मो गामनागामदिति वष्टि ॥

गौ मनुष्यों के जीवन का आलम्ब है, गौ कल्याण का परम निधान है, पहले के मनुष्यों का ऐश्वर्य गौ पर अवलम्बित था, और आगे की उत्पति भी गौ पर ही अवलम्बित है। गौ समग्र पुष्टि का साधन है।

उक्त कथन अक्षरसः सत्य है। जीवों का शरीर पंचभूतों से बना है और जीवन को पुष्ट करने तथा जीवन सुचारू रूप से चलाने के लिए पंचभूत आवश्यक है जिनमें दो कारक प्रधान है 1. पृथ्वी 2. जलवायु (जल + वायु)। जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन से पर्यावरण असंतुलित हो गया है जिसका असर मानव जीव जगत पर पड़ रहा है। फल असाध्य रोगों एवं महामारी के रूप में सामने आ रहा है। इसका समाधान गौ माता के पास है।

पृथ्वी में उपस्थित तत्त्व व योगिक जो जीवों के लिए आवश्यक व् स्वस्थ्थ्य कारक हैं, आश्चर्य का विषय है की वे गौ माता के गोवर, गोमूत्र, दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी में उपस्थित हैं। और तो और पृथ्वी को मानव जीवन विकास कही जाने वाली प्रक्रिया द्वारा जहर दिया गया है उसको भी संतुलित करने में गोमूत्र और गोवर सक्षम हैं। मानव शरीर के असाध्य कहे जाने वाले कैंसर, डापिवटीज, हृदय रोग, तनाव, पेट के समस्त रोग, आँख कान त्वचा के रोग गो माता के पंचगव्य तथा आयुर्वेद प्राकृतिक षट्क्रम विद्या द्वारा सही हो रहे है जिसका एलोपैथी में कुछ गंभीर रोगों का इलाज महंगा एवं जटिल है। अतः मानव को सुखसमय जीवन जीते हुए सात्विक भाव पर चलना होगा जो गौ सेवा से संभव है। प्रसनता का विषय है की अब लाखों कृषक गो आधारित प्राकृतिक खेती को अपना कर निरोगी जीवन जीने का सेवा कार्य कर रहे हैं। हम भी प्राकृतिक जीवन जियें।

निवेदक: राम जी राम नीका पंथ (राम रोही) ट्रस्ट, बरखेड़ा, पीलीभीत (उ० प्र०)

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