cow protection movement by Ram ji Ram Nikapanth Trust, Uttar Pradesh

१. गावः प्रतिष्ठा भूतानां गावः स्वस्त्ययनं महत। गावो भूतं च भव्यं च गावः पुष्टि च सनातनी ॥…………..जगतगुरु शंकराचार्य

अर्थ:  गाय रुद्रों की माता, वसुओ की पुत्री, अदिति पुत्रों की बहिन और प्रित रूप अमृत का खजाना है। प्रत्येक विचार शीत पुरुष को मैंने यहीं समझकर कहा है की निरपराध एवं अवध्य गो का वध न करो……………………………………………..अर्थवेद

२. आ गावो अम्मत भद्रमकन्तसीदन्तु गोठे रणयन्त्वस्मे प्रजावती पुरूषा इरिद्राय पूर्वीरुषसो दुहाना ॥

अर्थ:  गौओं ने हमारे यहां आकर हमारा कल्याण किया है। वे हमारी गौशाला में सुख से बैठे और उसे अपने सुंदर शब्दों से गुजा दें। ये विचित्र रंगों की गोएँ अनेक प्रकार के बछड़े-बछड़ियाँ जने और इन्द्रा (परमात्मा) के यजन के लिए उषा काल से पहले दूध देने वाली हो।

३. न ता न शन्ति न दशाति तस्करो नासममित्रो व्यथिरा दधषति। देवा याभिर्यजते ददाति च योगिताभिः स च ते गोपतिः सह ॥

अर्थः वे गौवे न तो नष्ट हो, न उन्हें चोर चुरा के ले जाये, और न शत्रु ही कष्ट पहुँचाये। जिन गोओ की सहायता से उनका स्वामी देवताओं का पजन करने तथा दान देने में समर्थ होता है, उनके साथ वह चिरकाल तक संयुक्त रहे।

४. गावो भागो गाव इन्द्रो म इच्छाद गावः समस्या प्रथमस्य भक्षः। इमा या गावः स जनस इंद्र इच्छामि हा मानसचिदिद्रम।।

अर्थः गोबर में परम पवित्र सर्वमङ्गतमयी भी लक्ष्मी जी नित्य निवास करती है। इसलिए गोवर से लेपन करना चाहिए।

अर्थ: गौएँ हमारा मुख्या धन हो, इंद्रा हमें गो धन प्रदान करे तथा यज्ञों की प्रधान वास्तु सोमरस के साथ मिलकर गोओ का दूध ही उनका नैवेद्य बने। जिसके पास ये गोएँ हैं, वह तो एक प्रकार से चंद्रा ही है। मैं अपने श्रद्धायुक्त मन से गव्य पदार्थों के द्वारा चंद्र (भगवान) का वजन करता हूँ।

५. पूर्व गाव मेदयथा किराम चिदधीर चित कृणुधा सुप्रीतकम भद्रं ग्रहं कृणुथ भद्रवाचो वृहद्धो वे उच्च्यते सभासु ॥

अर्थ: गोओ तू कृष शरीर वाले व्यक्ति को हष्ट पुष्ट कर देती हो एवं तेजहीन को देखने में सुन्दर बना देती हो। इतना ही नहीं. तुम अपने मंगलमय शब्दों से हमारे घरों को मंगलमय बना देती हो इसी से सभाओं में तुम्हारे ही महं यश का गान होता है।

६. प्रजत्रती: सुयवसे रुशन्तिः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः। माच स्तेन ईशत माघशंसः परि वो रुद्रस्य हेतिवृणिवक्तु ॥

अर्थ: गोओ, तुम बहुत से बच्चे जनो, चरने के लिए तुम्हे सूंदर बारा प्राप्त हो तथा सुन्दर जलाशय में तुम शुद्ध जल पीती रहो। तुम चोरों तथा दुष्ट हिंसक जीवों के चंगुल में न फंसों और रूद्र का शस्त्र तुम्हारी हर और से रक्षा करे। (……. अर्थवेदा)

सर्वेषामेव भूतानां गावः शरणमुत्तमम। यद गृहे दुःखिता गास याति नरके नरः।। …..धर्मशास्त्र

अर्थ: सभी जीव गौ माता के शरण में है, जिस घर में गाय दुखित होती है यह गुहाग होता है।