श्रीमद् संतदासायः नमः श्रीमद् प्रेमदासायः नमः श्रीमद् दरियावायः नमः
श्री संतदास जी महाराज की आरती
ऐसी आरती करो मेरे मन्ना ।
राम न विसरूं एको छिन्ना ।।
देही देवल मुख दरवाजा |
बणिया अगम त्रिकुटी छाजा ।।
सतगुरु जी की मैं बलिजाई ।
निशदिन जिह्वा अखण्ड लिवलाई ।
द्वितीय ज्ञान हिरदय भया बासा |
परमसुख जहाँ होय प्रकासा ।।
तृतीय ज्ञान नाभि मध जाई ।
सन्मुख भए सेवक जहाँ सांई ।।
अब जाय पहुँचा चौथी धामा ।
सब सन्तन का सरिया कामा ।।
अनहद नाद झालर झणकारा ।
परम जोत जहाँ होय उजियारा ||
कोई कोई संत जुगति यह जाणी ।
जन संतदास मुक्ति भये प्राणी ।।
श्रीमद् प्रेमदासायः नमः श्रीमद् दरियावायः नमः
श्री प्रेमदास जी महाराज की आरती
ऐसी आरती कर मन मेरा ।
जन्म मरण का मेटो फेरा ।।
सुरत शब्द मिल हिरदय आया।
रोम रोम सब ही चेताया ।।
राम निरंजन चहँ दिस देखा ।
उर अंतर में साहिब पेखा ।।
अगम आरती वार ना पारा।
जन प्रेमदास भज सिरजन हारा ||
सद्गुरु दरियाव जी महाराज की आरती
ऐसी आरती निश दिन करिये
राम सिमर भव सागर तरिये ||1||
तन मन अर्प चरण चित दीजें ।
सतगुरु शब्द हृदय घर लीजे ||2||
तन देवल बिच आतम पूजा ।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा ||३||
दीपक ज्ञान पांच कर बाती ।
धूप ध्यान खेवो दिन राती ||४||
अनहद झालर शब्द अखण्डा ।
निश दिन सेव करे मन पण्डा |
आनन्द आरती आतम देवा ।
जन दरियाव करे जहां सेवा ||६|
सद्गुरु किसनदास जी महाराज की आरती
कर मन आरती देव निरन्जन |
आवागमन सकल दुःख भंजन ||१||
प्रथम सेव सदगुरु की कीजै ।
तन मन अरप चरण चित दिजै ॥२॥
राम नाम रसणा लिव लागी ।
हृदय ज्योत ब्रह्म की जागी ॥३॥
नाभि कमल बीच नाद बजाया ।
गरजा शहर गिगन घरणाया ||४|
शहर आनंद घर मंगल चारा
चढ्या त्रिकुटी प्राप्त हमारा 1९11
आद अनाद राम घर मेरा
जन किसनदास चरणों का चेरा
सद्गुरु सुखराम जी महाराज की आरती
कोटक भाण हुआ उजियाला
दिल ही में साहिद दीदारा ||8||
अमृत बूँदे झणे कण मोती.
दीपक ज्ञान झिलामिल ज्योति ||2||
मनवा चंवर करे मनमाही
जहाँ देखूँ तहां सतगुरु साई ॥
सतगुरु जी की मैं बलि जाई ।
ऐसो भेद दिवो मुझ आई ||5||
तन केवल बीच आत्म देवा ।
निर्गुण भक्त भजन ये भेवा ||6||
प्रेम फूल मनवा ले आये |
चित का चन्दन ले चर चांदे 1६11
सेवा बन्दन आरती कीजे
तन मन वार अमीरस पीजे ||8||
सुरती सेवक निजमन माला ।
भाव का भोजन सरबरसाला I|9||
धूप ध्यान लागो दिन राती ।
दीपक ज्ञान प्रीत की बाती ॥२॥
सुखमण कलश अमी भर लाई ।
झिंगमिंग झिंगमिंग मन्दिर मांही
मुरली बीण बजे सुरनाई ।
संखरी घोर गिगन घर छाई
अनहद झालर का झणकारा |
रोम रोम बोले ररंकारा
जन सुखराम सता या जागी ।
ब्रह्म समाध ब्रह्मण्ड में लागी
दशवे द्वार करें हंस केला ।
अनन्त कोट सन्तो का मेला ।।१४।।
असो समायो सदा ही हमारे ।
आठ पोहर क्या सांझ सवेरे ।।१५।।
जन सुखराम अमर घर पाया ।
जामण मरण मोह नहीं माया ||१६ ।।
दोहा – जन सुखिया सतगुरू सता मोपे कहीयन जाय ।
जो मुझ बरती आय के, सो विधि कहीं सुणाय ।।
सद्गुरु सुखसारण जी महाराज की आरती
ऐसी आरती सिरजन हारा ।
पलक न बिसरूं नाम तुम्हारा ||१||
रसणा रखूँ राम गुण गाऊँ ।
पतिव्रता जूँ तोकूँ ध्यायूँ ।।
तन मन अरप चरण चित धाऊँ ।
राम मिलन को पन्थ निहाऊँ ||२ ||
केता ही संत समाधि लगावे ।
तुमरो वार पार नहीं पावे ||३||
ऐसो बिरध कहिजों धारें
करुणा सुन प्रभु पार उतारो
सुखसारण जन आरती गाये ।
जम की त्रास निकट नहीं आवे |
आरती तेरी निरन्जन गाडु ।
तन मन अरप चरण चित त्यायुं ||६||
रसना राम रटण ने लागी ।
शीतल भया तृष्णा सब भागी 1७11
मन मन्दिर में राम बिराजे
अनहद बाजा अंदर बाजे ||८|
या सुख को का कहूं अधिकाई ।
सतगुरू कृपा सूज हम पाई ॥ ॥
भारती गावें जन सुखसारण ।
भव सागर से पार उतारण ॥ १० ॥
सद्गुरु निर्भय राम जी महाराज की आरती
धिन धिन गुरू निर्भय राम दया निधि दीनन हितकारी,
हो स्वामी दीनन हितकारी ।
धिन धिन मोह विनाशक, भव बन्धन हारी, राम धिन धिन धिन गुरुदेव ॥ देर ||
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव गुरु पूजा धारी,
हो स्वामी गुरू पूजा धारी ।
वेद पुराण धिन धिन तप बखानत गुरु महिमा भारी,
राम धिन धिन धिन गुरुदेव ॥1॥
दान विविध दीने हो,
हो स्वामी दान विविध दीने |
संयम गुरु बिन ज्ञान न होवे कोट जतन कीजे,
राम धिन धिन धिन गुरुदेव ॥ २ ॥
माया मोह नदी चल जीव बहे सारे,
हो स्वामी जीव बहे सारे |
नाम जहाज बैठा कर गुरु पल में तारे,
राम धिन धिन धिन गुरुदेव ॥ ३ ॥
काम क्रोध मद मत्सर, चोर बड़े भारी,
हो स्वामी चोर बड़े भारी ।
ज्ञान खड्ग दे कर हमें, गुरु सब संसय हारे,
राम धिन धिन धिन गुरुदेव ॥४॥
नाना पंथ जगत में निज निज गुण गावे,
हो स्वामी निज निज गुण गावे।
सबका सार बता कर गुरु गुरु मार्ग लावे,
राम धिन धिन धिन गुरूदेव । ५ ।।
गुरु चरणामृत निर्मल, सब पातक हारी,
हो स्वामी सब पातक हारी ।
बचन सुनत तम नाशे, सब संशय हारी
राम धिन धिन धिन गुरुदेव ॥ ६ ॥
तन मन धन सब अर्पण, गुरु वरणन कीजे,
हो स्वामी गुरू वरन कीजें
सतगुरु नाम परम पद मोक्ष गति दीजें,
राम धिन धिन धिन गुरुदेव ॥ 7 ॥
सतगुरु जी की आरती जो कोई गायन जित्य करें,
हो स्वामी गायन नित्य करें।
“जन नीकाराम जी” सहज में भव सिन्धु पार करें,
राम धिन धिन धिन गुरुदेव ||
धिन धिन गुरू निर्भय राम दया निधि दीजन हितका
हो स्वामी दीनन हितकारी
धिन धिन मोह विनाशक, भाव बंधन हारी,
राम धिन धिन धिन गुरुदेव ॥ टेक ॥
सतगुरु श्री नीकाराम जी महाराज की आरती
धिन धिन सतगुरू नीकाराम जी,
दया निधि दीनन हितकारी। धिन धिन मोह विनाशक
भव बन्धन हारी राम धिन धिन धिन गुरूदेव ।।
तुम समरथ गुरू मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी ।
गुरू शरण गहूँ मैं किसकी।। तुम बिन और ना दूजा
आस करूँ मैं किसकी राम धिन धिन धिन गुरूदेव।। टेक ।।
तुम पूरण गुरूदेवा तुम अन्तर यामी गुरू तुम अन्तर यामी
निजपद दाता हो भवत्राता निर्गुण सतनामी राम धिन धिन धिन गुरूदेव ।।टेक।।
ज्ञान न जानू ध्यान न जानू निशदिन करूँ सेवा,
गुरू निशदिन करूँ सेवा मैं मूरख अज्ञानी
तुम निजपद के देवा राम धिन धिन धिन गुरूदेव ।। टेक ।।
दरस दिखाओ, मत तरसाओ नाम तुम्हारा नित लेवा,
गुरू नाम तुम्हारा नित लेवा। निजपद पाऊँ आरती गाऊँ
विघ्न हरो देवा। राम धिन धिन धिन गुरूदेव ।। टेक।।
मम प्राण उबारो विडद विचारो अन्तर पट खोलो,
गुरू अन्तर पट खोलो।। तीनो ताप मिटाकर,
गुरू अमरापुर मेलो राम धिन धिन धिन गुरूदेव । । टेक ।।
सतगुरू नीकाराम जी की आरती जो कोई गायन,
नित्य करे गुरू गायन नित करे उन हंसो को सतगुरू
श्री नारायण जी महाराज भव सिन्धु पार करे।।
राम धिन धिन धिन गुरूदेव ।।
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